Article 341 पर धार्मिक प्रतिबंध नहीं लगाया गया होता तो आज मुसलमान हर जगह पिछड़ेपन का शिकार नहीं होता

Article 341

Article 341

ज़ाकिर हुसैन
8368463763
Email:alfalahfoundation98@gmail.com

देश के मुसलमानों को शैक्षिक और आर्थिक क्षेत्र में विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, आजादी के बाद से देश की सरकारी नौकरियों में मुसलमानों की भागीदारी लगातार कम होती जा रही है.इसका एक मुख्य कारण यह है कि अनुच्छेद 341 पर लगाया गया धार्मिक प्रतिबंध मुसलमानों के लिए अधिक समस्याएँ पैदा कर रहा है। आंकड़े बताते हैं कि यदि 1950 में अनुच्छेद 341 पर धार्मिक प्रतिबंध नहीं लगाया गया होता, तो आज मुसलमानों की सरकारी नौकरियों में अधिक भागीदारी होती, सच तो यह है कि 341 पर लगाए गए धार्मिक प्रतिबंध के कारण देश में सरकारी नौकरियों में मुसलमानों, विशेषकर अनुसूचित जातियों का अनुपात और कम हो गया।

Article 341

आइए, हम जानते हैं कि अनुच्छेद 341 क्या है? दरअसल, अनुच्छेद 341 के तहत देश की अनुसूचित जाति (अंसारी मुस्लिम, कुरैशी,धोबी, धुनिया, हलालखोर आदि) मुसलमानों को आरक्षण की सुविधा थी, लेकिन 10 अगस्त 1950 को देश के पहले प्रधानमंत्री ने देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के द्वारा एक आदेश पारित कर देश के अनुसूचित जाति के मुसलमानों को आरक्षण से वंचित कर दिया। इसके बाद 28 जुलाई 1959 को नेहरू ने एक और शर्त रखी कि जो मुसलमान कभी हिंदू थे ,यदि वह पुनः हिंदू बन जाते हैं तो उन्हें आरक्षण मिलेगा, यदि वे अपने धर्म अर्थात् इस्लाम पर कायम रहते हैं, तो उन्हें आरक्षण से वंचित होना पड़ेगा।

Article 341

अनुच्छेद 14, 15, 16 और 25 संविधान समानता की बात करता है, इसके अलावा अनुच्छेद 341 पर धार्मिक प्रतिबंध, संविधान में लिखे गए अलग-अलग शब्द अलग-अलग प्रावधानों के साथ टकराव होता है, जब इस संवेदनशील और गंभीर मुद्दे का उल्लेख किया जाता है और राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल (मौलाना आमिर रशादी साहब) संयुक्त मुस्लिम मोर्चा और पूर्व सांसद डॉ. एम.एजाज अली साहब का जिक्र न हो तो यह लेखन के साथ बेईमानी होगी।

मौलाना आमिर रशादी और डॉ.एम.एजाज अली ने लगातार इस अन्याय और नाइंसाफी के खिलाफ आवाज उठाई है. इस मुद्दे पर अन्य राजनीतिक और धार्मिक संगठन एमआईएम, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, आज़ाद समाज पार्टी, कांग्रेस, जमीयत उलेमा हिंद, जमात इस्लामी हिंद वा अन्य संविधान में विशास रखने वाले वर्ग को को भी इसपर आवाज़ उठानी चाहिए। आज 10 अगस्त है और हमेशा की तरह कुछ क्षेत्रीय राजनीतिक दल और कुछ संगठन इस संवैधानिक अन्याय के खिलाफ आवाज तो उठाएंगे, लेकिन इसका हमारी व्यवस्था पर कितना असर होगा यह देखने वाली बात होगी। यह बात साफ है कि यह मुद्दा किसी धर्मविशेष का नहीं बल्कि देश के संविधान का है,इस संवेदनशील मुद्दे पर देश के प्रत्येक न्यायप्रिय नागरिक को एकजुट होकर आवाज उठानी चाहिए।

(लेखक रक्तदान की सामाजिक संस्था अल फलाह फाउंडेशन के संस्थापक और आज़ाद पत्रकार हैं)