ज़कात इस्लामी धर्म की तीसरी सबसे महत्वपूर्ण नींव है। इस्लाम की नींव पैगंबर के धन्य कथन के अनुसार पांच चीजों पर आधारित है, “बुनि-अल-इस्लामु अला खम्स”, शहादत तौहीद वा रिसालत, इकामा सलात यानी नमाज़, ज़कात, रोज़ा और हज। ज़कात के बारे में पवित्र कुरान की बहुत सी आयतें और पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल० की हदीसें मौजुद हैं, अल्लामा शामी रह० कहते हैं कि पवित्र कुरान में लगभग 32 स्थानों पर नमाज़ के तुरंत बाद जकात का उल्लेख किया गया है। जिस तरह नमाज़ फ़र्ज़ है, उसी तरह जकात भी फर्ज है।
फिर इस्लाम धर्म में ज़कात कब अनिवार्य हुआ, इसके बारे में कुरानी इरशादात पैग़म्बरे इस्लाम के कथनों और ऐतिहासिक साक्ष्यों से पता चलता है कि यह हिजरत से पहले अनिवार्य हो गया था, लेकिन इसके विस्तृत नियम और मसले मसाईल आदि हिजरत के बाद आएं। औपचारिक रूप से जकात वसूलने का आदेश 8 हिजरी में आया, यानी जकात का आदेश मक्का मुकर्रमा में दिया गया, निसाब और जकात की मिकदार हिजरत के बाद मदीना में, और जकात वसूलने की व्यवस्था मक्के के विजय करने के बाद लागू की गई। रमजान के पवित्र महीने में मुसलमान अपनी जकात निकालते हैं और गरीबों को देते हैं। मन में यह बात आती है कि क्या रमजान में ही जकात निकालना जरूरी है? इसका जवाब यह है कि हर महीने के हर दिन जकात निकालना जायज है। रमज़ान का महीना ज़कात के लिए ज़रूरी नहीं है लेकिन जब भी धन और संपत्ति का वर्ष पूरा हो जाए, तो उसी टाइम जकात देना बेहतर है। मौत कब आएगी, इसका कोई ठिकाना नहीं है, ऐसा ना हो कि जकात दिए बगैर मौत आ जाए और कब्र से लेकर कयामत तक दर्दनाक अज़ाब में मुब्तिला रहे।
यह भी समझना चाहिए कि जकात अदा करना फ़र्ज़ है रमजान के महीने में एक फर्ज का सवाब 70 गुना ज्यादा होता है लिहाजा़ रमज़ान के महिने में ज़कात देने से 70 गुना ज़्यादा सवाब मिलेगा लेकिन ज़रूरी है कि रमाजा़न से लेकर रमज़ान तक की तरतीब इस तरह बनाएं कि कोई भी जकात बीच में न रह जाए, जकात हर मुसलमान अक्लमंद बालिग़ साहिबे निसाब, मतलब (जिसके पास साढ़े सात तोला सोना जिसका वजन आज के ग्राम के हिसाब से 87 ग्राम 479 मिलीग्राम है) या साढ़े बावन तोला चांदी है (जिसका वजन आज के ग्राम के हिसाब से 612 ग्राम 35 मिलीग्राम है) या उसके बराबर रुपये-पैसे या व्यापार का सामान हो तो उस पर ज़कात फ़र्ज़ है। अगर किसी शख्स के पास सोना, चांदी, नकदी और व्यापार का सामान, ये चारों चीजें एक साथ या इनमें से कुछ मिलाकर 612 ग्राम 35 मिलीग्राम चांदी की कीमत के बराबर हे तो उस पर ज़कात फ़र्ज़ है, सोना चांदी चाहे सिक्कों के रूप में हो चाहे वह आभूषण के रूप में हो और आभूषण का उपयोग किया जा रहा हो या ऐसे ही रखा गया हो, उस पर ज़कात फ़र्ज़ है। जकात न देने वालों पर पवित्र कुरान मजीद और हदीस शरीफ में सख्त तंबीह की गई है, कुरआन में अल्लाह तआला फ़रमाते हैं जो लोग सोना चांदी जमा करके रखते हैं और उनको अल्लाह के रास्ते में खर्च नहीं करते आप उनको एक बड़े दर्दनाक अजा़ब की खबर सुना दो, मालुम हुआ जिस तरह नमाज़ फ़र्ज़ है इसी तरह ज़कात भी फ़र्ज़ है, अल्लाह तआला हम सबको अमल करने की तौफीक़ आता फरमाएं आमीन।
मुफ्ती मुहम्मद थानवी जामिया इस्लामिया दारूल आरिफीन सुफी जी वाली मस्जिद कुरैशियान नम्बर 01 मोहल्ला कस्साबान थाना भवन