मुज़फ्फरनगर, 4 अप्रैल (अज़मतुल्ला खान/एचडी न्यूज़)
मुजफ्फरनगर कोर्ट ने 32 साल बाद साक्ष्य के अभाव में फर्जी पासपोर्ट रखने के आरोप से आरोपित को बरी कर दिया। अभियोजन पक्ष आरोपित के विरुद्ध एक भी साक्ष्य कोर्ट में प्रस्तुत नहीं कर सका। मामले को चिह्नित करते हुए हाईकोर्ट के आदेश पर सीजेएम कोर्ट ने सुनवाई की।
अभियोजन के अनुसार तीन दशक पूर्व थाना खतौली पुलिस ने एक व्यक्ति को हिरासत में लेकर उससे दो पासपोर्ट बरामद किए थे। इस मामले में एसआइ डीएस पंवार ने मुकदमा दर्ज कराते हुए बताया था कि 7 मई 1992 को वह पुलिस कर्मियों के साथ गश्त पर थे। तभी मुखबिर से सूचना मिली कि एक व्यक्ति फर्जी पासपोर्ट नवीनीकरण कराने के लिए पासपोर्ट कार्यालय बरेली जाने वाला है।
पुलिस ने घेराबंदी करते हुए रोडवेज बस स्टैंड के सामने से इस मामले में आरोपित नूरसहन को दबोच लिया। जिससे दो पासपोर्ट जिनमें एक जमशेद पुत्र जान मोहम्मद निवासी मोहल्ला खेल कांधला और दूसरा शरीफ अहमद पुत्र राशिद निवासी सलेमपुर गढी मुरा मुरादाबाद के नाम था। नूरहसन ने बताया कि दोनों ही पासपोर्ट जमशेद के हैं, जिन्हें वह उसे देने के लिए जा रहा था। पुलिस ने इस मामले में धोखाधड़ी और अन्यआरोपों में मुकदमा दर्ज कर लिया। जमशेद ने कोर्ट में पेश होकर जमानत कराई। बचाव पक्ष के अधिवक्ता सुरेन्द्र कुमार ने बताया कि मामले में अभियोजन पक्ष तीन दशक के बाद भी कोई साक्ष्य कोर्ट में प्रस्तुत नहीं कर पाया।
इस मुकदमे की सुनवाई सीजेएम आकांक्षा गर्ग की कोर्ट में हुई। कोर्ट ने 26 फरवरी 2024 को साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए अंतिम अवसर प्रदान किया था और 11 मार्च को इस मामले में साक्ष्य देने को कहा। लेकिन अभियोजन पक्ष साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सका। कोर्ट ने दोनों पक्ष की सुनवाई कर आरोपित जमशेद को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया।आरोपित नूरहसन को कोर्ट 29 मार्च 1997 को पहले ही बरी कर चुकी है।