जमीयत उलमा असम फाॅरेन ट्रिब्यूनल के फैसला के खिलाफ हाईकोर्ट जाएगी

Arshad Madani

डिटेंशन कैम्पों में भेजे गए लोगों को न्याय दिलाने के लिए जमीयत उलमा हिंद हर संभव कानूनी संघर्ष करेगी:- मौलाना अरशद मदनी

नई दिल्ली, 10 सितंबर : असम में मुसलमानों के खिलाफ क्रूर सरकारी उत्पीड़न का दुष्चक्र ज़ोरों पर है। इसी के अंतर्गत कुल 28 असहाय मुसलमानों को जिनमें महिलाएं भी शामिल हैं, विदेशी घोषित कर जबरन डिटेंशन कैम्पों में भेज दिया गया। सूचना के अनुसार उन्हें फाॅरेन ट्रिब्यूनल ने विदेशी घोषित किया था, उनका संबंध असम के बारपेटा ज़िला से है। आश्चर्य की बात तो यह है कि 28 में से 12 तो ऐसे हैं जिनके संबंध में ट्रिब्यूनल का निर्णय ‘एक पक्षीय आदेश’’ (ऐक्स पार्टी आर्डर अर्थात एक ऐसा निर्णय जो अन्य पक्ष की अनुपस्थिति में अन्य पक्ष के हित में दे दिया जाता है या दूसरे पक्ष को क़ानूनी कार्रवाई में भाग लेने का अवसर ही नहीं दिया जाता) न्याय पर आधारित नहीं है, जबकि 16 मामलों में क़ानूनी कार्रवाई हुई है, उनमें से अधिकतर अनपढ़ और गरीब हैं और अदालत के क़ानूनी मामले से अवगत नहीं हैं यहां तक कि 12 मामलों में फाॅरेन ट्रिब्यूनल की ओर से इस समय तक कोई नोटिस भी नहीं पहुंचा था। दूसरी बात यह कि इस मामले की पैरवी करने वाले वकीलों ने भी अपने मुवक्किलों को उचित ढंग से बचाव के बारे में ठीक सुझाव नहीं दिया था।
उल्लेखनीय है कि इन लोगों को 1998 में विदेशी घोषित किया गया था, इसका काला सच यह है कि इस मामले में जो गैर-मुस्लिम थे उनके संबंध में औपचारिक रूप से एक अधिसूचना 5 जुलाई 2024 को जारी करके कहा गया कि इन लोगों को सी.ए.ए. के अंतर्गत नागरिकता दी जा सकती और आदेशानुसार बार्ड पुलिस को यह आर्डर किया गया है कि जो हिंदू, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन, पार्सी 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में दाखिल हो चुके हैं ऐसे लोग नागरिकता के लिए आवेनद कर सकते हैं और उन आवेदनों पर केंद्र सरकार विचार कर सकती है, इसलिए ऐसे मामलों को फाॅरेन ट्रिब्यूनल न भेजा जाए।
सुचना के अनुसार पहले ज़िला के विभिन्न क्षेत्रों से इन 28 परिवारों में से एक एक व्यक्ति को थाने बुलाया गया, इसके बाद उन्हें इस.पी. आॅफिस ले जाया गया जहां से ज़रदस्ती बस में बिठाकर डिटेंशन कैंप भेज दिया गया। दलील दी जा रही है कि उन्हें असम पुलिस की सीमा शाखा द्वारा विदेशी होने के नोटिस भेजे गए फिर उनके मुक़दमे को फाॅरेन ट्रिब्यूनल भेज दिया गया जहां कई सुनवाइयों के बाद इन सबको विदेशी घोषित किया गया, जबकि आमसो और अन्य कई संगठनों का कहना है कि इन लोगों को विदेशी कैसे घोषित किया जा सकता है जबकि इनके परिवार के अन्य लोग भारतीय हैं, इस मामले पर अपनी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि असम में कानून के दोहरे मापदण्ड का प्रयोग किया जा रहा है जिसके अंतर्गत मुसलमानों के साथ भेदभाव का व्यवहार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि क़ानूनी प्रक्रिया का ईमानदारी से पालन किए बिना यकतरफा फैसला सुनाकर किसी नागरिक की नागरिकता छीन लेना और फिर उसे जबरन डिटेंशन कैंप भेज देना एक अमानवीय कार्य है, परन्तु असम में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से यही सब कुछ हो रहा है।
मौलाना मदनी ने कहा कि हमें जो सुचनाएं मिली हैं उसके अनुसार 12 लोगों को एक पक्षीय आदेश द्वारा विदेशी घोषित किया गया है अर्थात उन्हें ट्रिब्यूनल के सामने अपना पक्ष रखने का अवसर ही नहीं दिया गया। दूसरी ओर इस प्रकार के मामलों में जो गैर-मुस्लिम हैं उनके लिए औपचारिक रूप से एक अधिसूचना जारी करके सी.ए.ए. के अंतर्गत नागरिकता देने की बात कही गई। उन्होंने प्रश्न किया कि अरख़िर यह किस प्रकार का निर्णय है कि एक ही परिवार के दूसरे लोग तो भारतीय नागरिक हों परन्तु उसी परिवार के कुछ लोगों को विदेशी घोषित कर दिया जाए, इसका स्पष्ट अर्थ है कि कानून में कहीं न कहीं कोई कमी अवश्य है। अगर ऐसा नहीं है तो फिर यह समझा जाना चाहिए कि विदेशी कानून का एक विशेष वर्ग के खिलाफ दुरुपयोग हो रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि हमने जमीयत उलमा असम से पूरा विवरण मांगा, हमारे वकीलों की टीम ने इसकी समीक्षा की और अब उनकी क़ानूनी सलाह के अनुसार जल्द ही जमीयत उलमा असम इस निर्णय को गुवाहाटी उच्च न्यायालय में चुनौती देने जा रही है, क्योंकि यह एक मानवीय मामला है इसलिए जमीयत उलमा हिंद न्याय के लिए अंत तक क़ानूनी संघर्ष करेगी। उन्होंने याद दिला कि जब गुवाहाटी हाईकोर्ट ने एन.आर.सी. के दौरान पंचायत सर्टीफिकेट को प्रमाण के रूप में अस्वीकार कर दिया था तो यह जमीयत उलमा हिंद ही थी जिसने सुप्रीमकोर्ट में इस मामले को पूरी ताकत से लड़ा और सफलता प्राप्त की जिसके परिणामस्वरूप 48 लाख महिलाओं में से 25 लाख मुस्लिम और 23 लाख हिंदू महिलओं की नागरिकता बच गई थी, उन्होंने कहा कि अगर जमीयत उलमा हिंद ऐसा न करती तो गुवाहाटी हाईकोर्ट के फैसला से असम में एक बड़ा मानवीय संकट पैदा हो सकता था। जमीयत उलमा हिंद ने इस मामले को मानवता के आधार पर लड़ा था और अब ताज़ा मामले को भी वह मानवता के आधार पर लड़ेगी।