क़यामत के दिन ज़कात न देने वालों को सज़ा मिलेगी:मौलाना जुनैद नदवी

Maulana Juned

शामली ज़िले में रमज़ान के आखिरी जुमा की नमाज़ शांतिपूर्ण अदा की गई।

कैराना, 5 अप्रैल (अज़मतुल्ला खान/एचडी न्यूज़)
सूत्रों के मुताबिक कैराना व आसपास में रमज़ान के आखिरी जुमा की नमाज़ शांतिपूर्ण तरीके से अदा की गई और देश में शांति अमन व चेन सुकून के लिए दुआ की गई।
मदरसा इशा-अतुल-इस्लाम की मस्जिद में मौलाना जुनैद नदवी ने कहा कि इस महीने में रोज़ा रखने के साथ-साथ बड़ी संख्या में लोग ज़कात भी देते हैं। दरअसल, ज़कात उस धन पर वाजिब है जो एक साल से आपके पास है और वह एक निश्चित मात्रा में है, जिसमें से ढाई प्रतिशत ज़कात की रक़म निकाल कर गरीबों में बाटी जाति है ।उन्होंने कहा कि अगर कोई ज़कात नहीं देगा तो क़यामत के दिन उससे पूछताछ की जाएगी। पवित्र कुरान और हदीस शरीफ में कहा गया है कि ज़कात न देने वालों को क़यामत के दिन सज़ा दी जाएगी। फ़रिश्ते उनके माथे और उनके पहलूवों को आग से दागे गें। जामिया मस्जिद में मौलाना मुहम्मद ताहिर ने कहा कि मुबारक महीने में कुछ दिन बचे हैं और हमें अपने पापों से तौबा करनी चाहिए और भविष्य में कोई पाप न करने की क़सम खानी चाहिए उन्होंने कहा की तौबा करके अस्तग़फार करें। मौलाना ने कहा की खुश क़िस्मत वह लोग हैं जो इस महीने में मस्जिदों में सजदा करके अपने गुनाहों को माफ कराऐं गे। जबकि बदक़िस्मत वे हैं जो इस मुबारक महीने में भी अपनी माफ़ी नहीं करा सकें।
ख़ानक़ाह इमदादिया अशरफिया थाना भवन में मौलाना नजमुलहसन थानवी और जामिया फैजान हकीम-उल-उम्मत में मौलाना हुज़ैफा थानवी ने कहा कि रमज़ान का आखिरी जुमा भी और जुमौं की तरह है इसकी कोई अलग खासूसियत नहीं है , हदीस शरीफ़ में इसका कोई सबूत नहीं मिला है।इसीलिए फुक्हाने जुम्मे के खुत्बे में अलविदा अलविदा या शाहरु रामाज़ान के अल्फाज़ नहीं कहे हैं ।
हाँ! जुमे का दर्जा स्थाई है, इस दर्जे का विदाई से कोई लेना-देना नहीं है, सच तो यह है कि पवित्र महीने के आखिरी दस दिन भी हमारे हाथ से निकल रहे हैं और हमारे अंदर आंतरिक तौर पर कोई खास बदलाव नहीं आया है। कारी अब्दुल वाजिद ने कहा कि हमें सदका फित्र के प्रति अधिक संवेदनशील होने की जरूरत है। क्योंकि सदका फित्र गरीबों की जरूरतों को पूरा करने के लिए है ख़ुशी का दिन, यानी ईद के दिन, गरीबों को भी हमारी ख़ुशी में शामिल होना चाहिए। पड़ोसी को ज़रूरत है और आप त्योहार की खुशियों में व्यस्त हैं, तो समझ लें कि आपका यह त्योहार कोई त्योहार नहीं है ।सदका फित्र से रोज़े में जो खामियां रह जाती हैं उनकी तलाफी हो जाती है। सदक़ा अल-फ़ितर इसलिए दिया जाता है ताकि गरीब आदमी त्योहार के दिन भरपेट खाना खा सके और खुशियों में हिस्सा ले सके। उन्होंने कहा कि हमारे देश में सदका अल-फितर की अदायीगी गेहूं या पैसे के माध्यम से की जाती है, कहीं कहीं कुछ खजूर और किशमिश से अदायीगी की जाती है ।
इस दौरान जिले में पुलिस बल की गश्त भी जारी रही और ज़िले के अन्य क़स्बों जिनमें कांधला भी शामिल है, मस्जिदों के बाहर पुलिसकर्मी तैनात रहे, ऊन और झंझना आदि से भी ऐसी ही खबरें मिली हैं कि मस्जिदों के इमामों ने अमन-चैन के लिए दुआ की है।