SBI बताए 5 सालों में किस किस ने खरीदा इलेक्टोरल बांड्स: सुप्रीम कोर्ट

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नई दिल्ली 15 फरवरी, (एच डी न्यूज़):  गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को “असंवैधानिक” घोषित करते हुए इसकी वैधता को रद्द कर दिया। शीर्ष अदालत ने अपने निर्णय में यह भी माना कि अनुच्छेद 19(1)(A) के तहत इलेक्टोरल बॉन्ड की गोपनीयता सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि चुनावी बॉन्ड एक मौलिक उपाय नहीं है और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों को चुनावी बॉन्ड बेचने से मना कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को निर्देश दिया कि 5 साल पहले इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम शुरू होने के बाद से उसने किस पार्टी को कितने चुनावी बॉन्ड जारी किए हैं, इसकी जानकारी मुहैया कराए। एसबीआई को चुनावी बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों को प्राप्त चंदे का विवरण तीन सप्ताह के अंदर इलेक्शन कमीशन को देना होगा. शीर्ष अदालत ने एसबीआई को यह भी निर्देश दिया है कि वह​ चुनावी बॉन्ड से जुड़ी जानकारी अपनी वेबसाइट पर भी पब्लिश करे।  बता दें कि सीजेआई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने पिछले साल 2 नवंबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे। एसबीआई को राजनीतिक दलों द्वारा इनकैश कराए गए चुनावी बॉन्ड का विवरण भी प्रस्तुत करना होगा. वहीं इनकैश नहीं कराए गए इलेक्टोरल बॉन्ड की राशि खरीदार के खाते में वापस करनी होगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा- चुनावी बॉन्ड के माध्यम से कॉर्पोरेट दानदाताओं के बारे में जानकारी का खुलासा किया जाना चाहिए। क्योंकि कंपनियों द्वारा राजनीतिक पार्टियों को दिया जाने वाला चुनावी चंदा पूरी तरह से ‘लाभ के बदले लाभ’ की संभावना पर आधारित होता है।

क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड

2 जनवरी, 2018 को केंद्र सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की घोषणा की, जिससे राजनीतिक चंदा में पारदर्शिता आएगी। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की अधिकृत शाखाओं से चुनावी बॉन्ड खरीदने का अधिकार किसी भी भारतीय नागरिक को था, या किसी व्यवसाय, संघ या निगम को भारत में बनाया गया था। 1000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख रुपये और 1 करोड़ रुपये के मूल्यों में इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे जाते थे। राजनीतिक दल को दान देने के लिए केवाईसी-कम्प्लायंट अकाउंट का उपयोग किया जा सकता था।

राजनीतिक दलों को जारी होने से 15 दिन के भीतर इन्हें इनकैश कराना होता था। इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से चंदा देने वाले व्यक्ति का नाम और अन्य विवरण नहीं दर्ज किया गया था, जिससे दानकर्ता गोपनीय था। किसी व्यक्ति या संस्था द्वारा खरीदे जाने वाले चुनावी बॉन्ड की सीमा नहीं थी। केंद्र ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951, कंपनी अधिनियम 2013, आयकर अधिनियम 1961 और विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम 2010 को संशोधित करके इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को लागू किया। चुनावी बॉन्ड योजना को संसद से मंजूरी मिलने के बाद 29 जनवरी 2018 को घोषित किया गया था।