ट्रम्प का शुल्क युद्ध,डोनाल्ड ट्रम्प अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार के हकदार

्रो. राकेश मोहन जोशी
 कुलपति
 भारतीय विदेश व्यापार संस्थान,  नई दिल्ली
 rakeshmohanjoshi@iift.edu

ट्रम्प का व्यापार को साधने का चतुर दृष्टिकोण

पाकिस्तान, जिसे अमेरिका ने स्वयं यह दावा किया है कि उसने 9/11 हमलों के वास्तुकारों को शरण दी थी, यह गौरव प्राप्त करता है कि उसने सबसे पहले 21 जून 2025 को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए औपचारिक रूप से नामित किया। इसके बाद कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, इज़राइल, कंबोडिया, आर्मेनिया और अज़रबैजान जैसे कुछ अन्य तथाकथित शांतिप्रिय देशों ने भी नामांकन किया।

ट्रम्प ने उसी दिन सोशल मीडिया मंच ट्रुथ सोशल पर यह कहते हुए अपनी आकांक्षा छिपाई नहीं कि—
‘मैं भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध रोकने के लिए नोबेल पुरस्कार नहीं पाऊँगा।’
यह दावा भारत ने बार-बार खारिज किया, जिससे दुनिया के सबसे ताकतवर नेता को नाराज़गी हुई।

बाद में व्हाइट हाउस ने दोहराया कि वे नोबेल शांति पुरस्कार के लिए विचार योग्य हैं। हालाँकि, स्वयं डोनाल्ड ट्रम्प ने स्वीकार किया—
‘वे मुझे कभी नोबेल शांति पुरस्कार नहीं देंगे। यह बहुत बुरा है, मैं इसका हकदार हूँ, लेकिन वे मुझे कभी नहीं देंगे।’
इससे उनकी उस प्रतिष्ठित मान्यता के प्रति गहरी उत्सुकता उजागर होती है।

नोबेल अर्थशास्त्र पुरस्कार के दावेदार ट्रम्प

जहाँ कई देश उनकी शांति पुरस्कार के लिए उपयुक्तता पर बहस कर रहे हैं, वहीं व्यापार और वाणिज्य के क्षेत्र में ट्रम्प की अनूठी उपलब्धियों के आधार पर वे अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार के कहीं अधिक योग्य ठहरते हैं।

उन्होंने अपनी राष्ट्रवादी नीति और अमेरिका फर्स्ट एजेंडा के तहत एक बहुत ही अलग और परंपराओं से हटकर आर्थिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उनका मानना है कि यदि अमेरिका व्यापार घाटे को समाप्त कर दे, तो अमेरिकी समृद्धि अपने आप लौट आएगी।

शुल्क को हथियार बनाना

ट्रम्प ने शुल्कों (टैरिफ़) को हथियार की तरह इस्तेमाल किया। वे मानते थे कि आयातित वस्तुओं पर ऊँचे शुल्क लगाने से विदेशी उत्पादक हतोत्साहित होंगे और अमेरिकी उद्योग को प्रतिस्पर्धा से सुरक्षा मिलेगी।

उन्होंने चीन, यूरोपियन यूनियन, कनाडा और यहाँ तक कि भारत जैसे देशों पर भी शुल्क लगाए। उनका दावा था कि इस प्रकार की टैरिफ़ वार से अमेरिका की अर्थव्यवस्था मज़बूत होगी और लाखों रोजगार वापस आएँगे।

हालाँकि, विशेषज्ञों का कहना है कि इससे वैश्विक आपूर्ति शृंखला प्रभावित हुई, वस्तुओं की लागत बढ़ी और उपभोक्ताओं पर बोझ पड़ा। फिर भी ट्रम्प ने इसे अमेरिकी हितों की रक्षा के लिए आवश्यक कदम बताया।

ट्रम्प ने विश्व व्यापार संगठन (WTO), उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता (NAFTA) और अन्य बहुपक्षीय संस्थाओं की आलोचना की। उन्होंने इन्हें अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक और अनुचित ठहराया।

उन्होंने NAFTA को बदलकर USMCA (संयुक्त राज्य–मेक्सिको–कनाडा समझौता) बनाया, जिसमें अमेरिका के लिए अधिक लाभकारी शर्तें शामिल की गईं।

ट्रम्प की सबसे बड़ी और चर्चित आर्थिक पहल चीन के साथ उनका व्यापार युद्ध था। उन्होंने आरोप लगाया कि चीन अनुचित व्यापारिक प्रथाओं और बौद्धिक संपदा चोरी के ज़रिए अमेरिका का शोषण कर रहा है।

उन्होंने चीन से आयातित वस्तुओं पर अरबों डॉलर के शुल्क लगाए। चीन ने भी इसका जवाब अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क लगाकर दिया।

इससे वैश्विक व्यापार अस्थिर हुआ, लेकिन ट्रम्प ने इसे अमेरिकी हितों की रक्षा के लिए निर्णायक कदम बताया।

ट्रम्प की टैरिफ़ नीति ने केवल अमेरिका ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को प्रभावित किया। वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता बढ़ी, निवेशकों का भरोसा डगमगाया और कई देशों को नई व्यापारिक रणनीतियाँ बनानी पड़ीं।

जहाँ आलोचक कहते हैं कि उनकी नीतियों ने वैश्विक व्यापार प्रणाली को नुकसान पहुँचाया, वहीं समर्थकों का दावा है कि उन्होंने अमेरिकी श्रमिकों और उद्योगों के लिए नई ताक़त पैदा की।

ट्रम्प का आर्थिक दृष्टिकोण असामान्य, विवादास्पद और साहसी रहा। उन्होंने शुल्कों को एक राजनीतिक और कूटनीतिक हथियार बना दिया।

भले ही वे नोबेल शांति पुरस्कार की बजाय अधिक चर्चा में रहे हों, लेकिन व्यापार और वाणिज्य के क्षेत्र में उनकी नीतियों का प्रभाव यह संकेत देता है कि वे अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार के अधिक प्रबल दावेदार हो सकते हैं।